soch

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Tuesday, May 24, 2011

उधार जिन्दगी से

जब माँगा हमने थोडा सा उधार जिन्दगी से जिन्दगी का
तो उसने कहाँ कौन हो तुम 
रोया , समझाया बहुत मगर
कम्बखत  उसने नहीं माना
अब आया समझ जिंदगी का फलसफा
आज  छीन ली हमने आपनी जिंदगी , जिंदगी से
तो समझ में  यह आया मेरे दोस्त
शराफत का जमाना नहीं है अब मेरे दोस्त
जिंदगी दिखने में है जितनी  खुबसूरत
ये उतनी ही बेवफा भी है
हाथ फैलाओगे तो नहीं मिलेगा कुछ भी
छीन लोगे हक तो सब तुम्हारा है

2 comments:

Kailash Sharma said...

बहुत सच कहा है..

Shona said...

शुक्रिया कैलाश जी