soch

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Sunday, October 27, 2013

तुम भी तो आज तुम नहीं
हम भी तो आज हम नहीं
अब ना ख़ुशी की है ख़ुशी
गम का भी आज गम नहीं
ये तो नहीं के गम नहीं
हाँ मेरी आँख नम नहीं
..............चित्रा
ना तुम आते ना कोई पैगाम
क्या में इसे समझू
आखिरी सलाम ???
कहते है वक़्त हर दर्द की दवा है
कम्भख्त यहाँ बेअसर क्यों हो गया
जानता हु मज़बूरी तेरी
पर मुझसे यु चेहरा तो ना छुपा
ना कर मुझसे बात चाहे
इन नजरो को तो ना तरसा
देखो ...दरवाजे पर दस्तक किसकी है
अगर इश्क हुआ तो कहना .....अब
यहाँ कोई... "दिल" ...नही रहता
सामने मंज़िल थी,
और पीछे उसकी आवाज़

रुकता तो सफ़र जाता,
चलता तो बिछड़ जाता …
रास्ते कहाँ खात्मा होते हैं जिंदगी के सफर में ,
मंज़िलें तो वही है जहाँ ख्वाइशें थम जाएँ.
जिनके सीने में जिगर का एहसास होता है ....
वो कमबख्त इश्क से परहेज नही करते
हर वक़्त मेरी खोज में रहती है तेरी याद ....
तूने मेरे वजूद की तन्हाई भी छीन ली ....
हंस कर हर मुसीबत को सहा है मैंने ...
इस उम्मीद पर की आज से बेहतर कल होगा .......