soch

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Sunday, October 5, 2014


शहर बदलता रहा मैं सकूँ की तलाश में " समंदर "
पर उदासियों की वजह थी घर उसका
जो मेरे जिगर में था
मैंने कहा तकरार न कर। ……
प्यार से चाहे जान ले लो
" कमबख्त " ने वही किया। .....
छुप गया पहलु में रकीब के........
देख कर मुझे शहर में अपने। …।
वो शख्स जो कभी राह तकता था मेरी सुबह शाम
समंदर

Saturday, February 22, 2014

जिन्दा है कसम से चाहे नब्ज टटोल लो ....
ये सजा ए इशक़ है " समंदर "
बदनसीबो को ही नसीब होती है

Friday, February 21, 2014

मेरी महफ़िल में वो शख्स आया भी लेकिन ............
एक सलाम को भी दिल तरसता रहा .....
" कम्बखत कह न सका दिल की बात हमसे....
और हमने दुश्मन किया सारे जहाँ को ........
वो रोया तन्हाई में सिमट कर
हमने आसुओ में भिगोया सारे जहाँ को " 
कभी मिले तुम्हे वो कम्बख्त तो कहना उससे ए " समंदर "
के निशां बाकी है अभी " जो जख्म तूने दिए "
सुन तो जरा ए नदी ....
तेरा रास्ता कोई और है
तेरा हमसफ़र भी कोई और है ..
तू तलाशती फिरे किसे ?
तेरे दिल में भी एक शोर है
" समंदर " से निकल कर तू चल तो पड़ी
तुझे जाना न जाने किस और है ..
तुझे मंजिलो की तलाश है
उसे इंतज़ार बस तेरा