जिन्दा है कसम से चाहे नब्ज टटोल लो .... ये सजा ए इशक़ है " समंदर " बदनसीबो को ही नसीब होती है
Friday, February 21, 2014
मेरी महफ़िल में वो शख्स आया भी लेकिन ............ एक सलाम को भी दिल तरसता रहा .....
" कम्बखत कह न सका दिल की बात हमसे.... और हमने दुश्मन किया सारे जहाँ को ........ वो रोया तन्हाई में सिमट कर हमने आसुओ में भिगोया सारे जहाँ को "
कभी मिले तुम्हे वो कम्बख्त तो कहना उससे ए " समंदर " के निशां बाकी है अभी " जो जख्म तूने दिए "
सुन तो जरा ए नदी ....
तेरा रास्ता कोई और है
तेरा हमसफ़र भी कोई और है ..
तू तलाशती फिरे किसे ?
तेरे दिल में भी एक शोर है
" समंदर " से निकल कर तू चल तो पड़ी
तुझे जाना न जाने किस और है ..
तुझे मंजिलो की तलाश है
उसे इंतज़ार बस तेरा