soch

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Saturday, February 22, 2014

जिन्दा है कसम से चाहे नब्ज टटोल लो ....
ये सजा ए इशक़ है " समंदर "
बदनसीबो को ही नसीब होती है

Friday, February 21, 2014

मेरी महफ़िल में वो शख्स आया भी लेकिन ............
एक सलाम को भी दिल तरसता रहा .....
" कम्बखत कह न सका दिल की बात हमसे....
और हमने दुश्मन किया सारे जहाँ को ........
वो रोया तन्हाई में सिमट कर
हमने आसुओ में भिगोया सारे जहाँ को " 
कभी मिले तुम्हे वो कम्बख्त तो कहना उससे ए " समंदर "
के निशां बाकी है अभी " जो जख्म तूने दिए "
सुन तो जरा ए नदी ....
तेरा रास्ता कोई और है
तेरा हमसफ़र भी कोई और है ..
तू तलाशती फिरे किसे ?
तेरे दिल में भी एक शोर है
" समंदर " से निकल कर तू चल तो पड़ी
तुझे जाना न जाने किस और है ..
तुझे मंजिलो की तलाश है
उसे इंतज़ार बस तेरा