soch

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Sunday, July 8, 2012

ये साँस ही न रुके उसका क्या करू


जखम तो भर जायेगे  , अगर न कुरेदू इने 
लेकिन जो कील फसी है सीने में
उसका क्या करू 
दर्द तो अपना लिया है दिल से
जो तुमने दिया इनाम मोहब्बत में
पर आंसू जो न रुके 
उसका क्या करू 
चलती फिरती बन गया हु लाश
ये साँस ही न रुके 
उसका क्या करू
तुम दूर हो मुझ से समझ गया हु मैं
ये कम्बखत दिल ही न समझे
उसका क्या करू
प्यार तो हद से बढ कर करता हु तुम्हे मग .............
कम्बखत  दुनिया मांगे सबूत 
उसका क्या करू 
खुश हो तुम मुझसे बिछड़ कर भी 
ये कहते है लोग 
ये दिल ही न माने
उसका क्या करू  


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