soch

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Tuesday, May 24, 2011

उधार जिन्दगी से

जब माँगा हमने थोडा सा उधार जिन्दगी से जिन्दगी का
तो उसने कहाँ कौन हो तुम 
रोया , समझाया बहुत मगर
कम्बखत  उसने नहीं माना
अब आया समझ जिंदगी का फलसफा
आज  छीन ली हमने आपनी जिंदगी , जिंदगी से
तो समझ में  यह आया मेरे दोस्त
शराफत का जमाना नहीं है अब मेरे दोस्त
जिंदगी दिखने में है जितनी  खुबसूरत
ये उतनी ही बेवफा भी है
हाथ फैलाओगे तो नहीं मिलेगा कुछ भी
छीन लोगे हक तो सब तुम्हारा है

Saturday, May 14, 2011

तेरी शाक्सियत है बड़ी उची

कुछ न कुछ कमी मुझ में ही रही होगी
ऐसे ही नहीं मैं उसके दिल से उत्तर गया
जिन्दा हु शायद किसी की दुआओ का असर है
जो हालात देखे है कब का मर मिटा होता 
तेरी शाक्सियत है बड़ी उची , 
मेरी मज़बूरी है मैं ओकात में रहता हु 
कहने को आऊ तो  बोलती बंद कर दू लोगो की
कहने को बहुत कुछ है पर मैं सहता हु 
पानी हु में नीचे की तरफ बहता हु
लोग तो बड़े जालिम है , जुलम किये जा रहे है 
लोग पता नहीं कैसे सहे जा रहे है 
कही तेल के कुओ की प्यास है
तो कही जेहाद का नारा है
हर जगह बेक़सूर माँरे  जा रहे है 

Friday, May 13, 2011

हाय री जनता

हाय री जनता , तेरा कुछ नहीं बनता 
अमरसिंह की खुल गई पोल 
फिर भी वोह कर गया गोल मोल 
मायावती की है सरकार
हर जगह है मारो मार
स्विस बैंक का  खुल गया  खाता
फिर भी जनता को कुछ समझ नहीं आता
लुट रहे है देश को
क्यों की जनता है भोली
मैं तो कहता हु इन गद्दारों को
बीच  सड़क के मारो गोली  


Friday, May 6, 2011

मर्ज..........

ये मर्ज है ऐसा , जिसकी दवा न कोई 
इक दर्द है ऐसा  , जिसके सिवा न कोई 
मिल जाये अगर जन्नत है आगोश में
न मिले तो ऐसा नरक न कोई 
सबसे प्यार की उम्मीद न करो यारो
निभेगी न किसी से , न मिलेगा कोई 
करती है आबाद और बर्बाद भी
जब चला नजरो का तीर , तो बचा न कोई