ये जीवन है
soch
Sunday, October 5, 2014
शहर बदलता रहा मैं सकूँ की तलाश में " समंदर "
पर उदासियों की वजह थी घर उसका
जो मेरे जिगर में था
मैंने कहा तकरार न कर। ……
प्यार से चाहे जान ले लो
" कमबख्त " ने वही किया। .....
छुप गया पहलु में रकीब के........
देख कर मुझे शहर में अपने। …।
वो शख्स जो कभी राह तकता था मेरी सुबह शाम
समंदर
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