soch

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Saturday, May 14, 2011

तेरी शाक्सियत है बड़ी उची

कुछ न कुछ कमी मुझ में ही रही होगी
ऐसे ही नहीं मैं उसके दिल से उत्तर गया
जिन्दा हु शायद किसी की दुआओ का असर है
जो हालात देखे है कब का मर मिटा होता 
तेरी शाक्सियत है बड़ी उची , 
मेरी मज़बूरी है मैं ओकात में रहता हु 
कहने को आऊ तो  बोलती बंद कर दू लोगो की
कहने को बहुत कुछ है पर मैं सहता हु 
पानी हु में नीचे की तरफ बहता हु
लोग तो बड़े जालिम है , जुलम किये जा रहे है 
लोग पता नहीं कैसे सहे जा रहे है 
कही तेल के कुओ की प्यास है
तो कही जेहाद का नारा है
हर जगह बेक़सूर माँरे  जा रहे है 

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

जिन्दा हु शायद किसी की दुआओ का असर है
जो हालात देखे है कब का मर मिटा होता
bahut khoob

Shona said...

शुक्रिया रश्मि जी