soch

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Sunday, July 29, 2012

ये कड़वा सच


कुछ दिनों से फिर वही महसूस हो रहा है  
वो जो दर्द कही दफ़न हो गया था
दिल क़ी गहरी खाइयो  में
कही से फिर लावा बन उबल रहा है 
 अपना सारा क्रोध जो पी लिया था
एक ही साँस में 
कमबख्त इस लावे को हवा दे रहा है 
फिर वही वीरान रात्तें दस्तक दे रही है 
फिर वही नींद क़ी तलाश में भटक रहा हु 
कमबख्त कमीना दिल भी 
दोगला हो गया है 
कभी तो इसके मीठे आश्वासन 
तस्सली  दे जाते है
कभी कमबख्त सच उगल देता है  
ये कड़वा सच ( मैं जनता हू सच क़ी कडवाहट )
ना पिया जाता है और 
ना उगला जाता है 

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