कुछ दिनों से फिर वही महसूस हो रहा है
वो जो दर्द कही दफ़न हो गया था
दिल क़ी गहरी खाइयो में
कही से फिर लावा बन उबल रहा है
अपना सारा क्रोध जो पी लिया था
एक ही साँस में
कमबख्त इस लावे को हवा दे रहा है
फिर वही वीरान रात्तें दस्तक दे रही है
फिर वही नींद क़ी तलाश में भटक रहा हु
कमबख्त कमीना दिल भी
दोगला हो गया है
कभी तो इसके मीठे आश्वासन
तस्सली दे जाते है
कभी कमबख्त सच उगल देता है
ये कड़वा सच ( मैं जनता हू सच क़ी कडवाहट )
ना पिया जाता है और
ना उगला जाता है
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