लगा कर आग जो हाथ सेकते है
कभी इधर की तो कभी उधर की फेकते है
नजर नहीं आयेगे जब होगा सामना
कर दूंगा हषर वो की मुश्किल हो जायेगा पहचानना
मासूम दिलो के जज्बातों से खेलना
पड़ेगा बहुत महंगा उन्हें
बहुत रुलाया , तडपाया , मजबूर किया है हमे
जूठी तोहमते , इल्जाम बहुत सहे है हमने
हँसी आते है सोच कर , क्या होगा उन जालिमो का
जब आपनी पर आएगा कोई
मेरी हस्ती तो तुम मिटा न सके
आएगा मजा जब तुमारी हस्ती मिटाएगा कोई
क्योकि खेल अभी ख़तम नहीं हुआ
अभी तक हारा नहीं हु मैं
2 comments:
यह आक्रोश अच्छा लगा।
शुक्रिया देवेन्द्र जी
Post a Comment