soch

soch

Thursday, February 2, 2012

तरसती आँखे

न दर्द रुकता है 
न वक़्त गुजरता है 
न आसू  आते है
न नमी सूक्ति है
न ख्वाब बदलते है
न ख्वाब टूटते है 
सब कुछ मिल तो गया है
फिर भी आँख तरसती है
जो चेहरा  नहीं है कही भी
बस उसे दुंद्ती है
खुद ही उलझाई है राहे अपनी 
खुद ही बना हु तमाशा 
अगर बदल गए है सब
मैं क्यों नहीं बदल जाता
न वो याद करते है
न मुझसे भुला जाता 

   

No comments: